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संगोष्ठी/कार्यशाला/सम्मेलन/ अनुदान

1. इतिहास एवं इससे संबंधित अन्य विषय के संदर्भ में सेमिनार/कार्यशाला/अकादमिक अधिवेशन /परिसंवाद/व्याख्यान आयोजित कराने के सम्बन्ध में समन्वयक के रूप में आवेदन करने वाले को शोध परियोजना समिति (RPC) द्वारा अनुदान प्रदान किया जा सकता है।

2. उक्त विषयानुसार प्राप्त आवेदन को सीधे शोध परियोजना समिति (RPC) के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए अथवा सदस्य सचिव द्वारा निर्णय लिए जाने की स्थिति में उसे पहले विशेषज्ञ को प्रेषित किया जाना चाहिए एवम् विशेषज्ञ के सुझावों को संलग्न करने के उपरांत उसको शोध परियोजना समिति (RPC) के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए I

(क) एक वित्तीय वर्ष की अवधि के दौरान भा.इ.अ.प. की निधि को किसी व्यक्ति-विशेष विश्वविद्यालय के विभाग / कॉलेज को एक बार से अधिक प्रदान नहीं दिया जा सकता I प्रमुखतः इतिहास विभाग को वरीयता प्रदान की जाएगी I

3. शोध परियोजना समिति (RPC) स्वयं की देखरेख में आयोजित अथवा परिषद् या स्वयं द्वारा अनुमोदित किसी योजना के अंतर्गत सेमिनार अथवा कार्यशाला के आयोजन हेतु विहित शर्तों (निधीयन राशि को समावेशित करते हुए जो रु. पचास हजार से अधिक भी हो सकती है) का अनुपालन करने (सेमिनार/कार्यशाला सम्बन्धी ) अथवा विशेष योजनाओं के अंतर्गत कार्यशाला या सेमिनार आयोजित करने हेतु शोध परियोजना समिति (RPC) द्वारा अनुमोदित सामान्य दिशानिर्देशों का अनुपालन करने की स्थिति में किसी संस्थान (सम्बद्ध संस्थान के रूप में मान्य) अथवा समन्वयक के रूप में शोधार्थी को उक्त के आयोजन की अनुमति प्रदान कर सकती हैI समन्वयक का नाम, पदनाम एवम् बायोडाटा (जीवन-वृत्त) भी अवश्य भेजें I

4. अनुदान हेतु आवेदन पत्र को जमा करने के समय सेमिनार/ कार्यशाला के समन्वयक को आगामी विषय विशेषज्ञों के नाम के साथ-साथ उनके द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले प्रस्तावित वार्तालापों/पत्रों के शीर्षक को भी प्रेषित किया जाना चाहिए एवं समन्वयक/ संस्था के विरूद्ध कुछ भी लंबित नहीं होना चाहिए।

5. अनुमोदित राशि का अधिकतम 80% भाग अग्रिम राशि के रूप में समन्वयक को निम्न शर्तों एवम् संस्वीकृति पत्र में दर्ज तमाम योग्यताओं का पूर्णता से अनुपालन करने की स्थिति में अध्येता को प्रदान किया जाएगा I

6. सेमिनार/कार्यशाला के आयोजन में समन्वयक द्वारा मितव्ययता बरतते हुए प्राप्त अनुदान को सिर्फ उस अमुक कार्य हेतु ही प्रयोग में लाया जाना अनिवार्य है I

7. भा.इ.अ.प. से प्राप्त अनुदान के विषय में जब अनुदान-ग्राही संस्थान के लेखाविभाग को निरीक्षण एवम् लेखा परीक्षण हेतु सूचित किया जाए तो उस अमुक संस्थान को शिक्षा मंत्रालय, भा.इ.अ.प. के लेखा विभाग एवम् CAG(DPC)एक्ट 1971 के प्रावधानों के अंतर्गत CAG (नियंत्रक एवम् महालेखापरीक्षक) से निरीक्षण एवम् लेखा परीक्षण कराने हेतु अवश्य रूप से स्वीकृति देनी होगी I 

8. अनुदान-ग्राही द्वारा परिषद् से प्राप्त अनुदान को किसी अन्य कार्य हेतु प्रयोग नहीं करना चाहिए एवम् अनुदान सम्बन्धी नियमों एवम् शर्तों का मुख्य रूप से पालन करते हुए दूसरे संस्थान अथवा संस्था से सम्बंधित कार्य योजना का क्रियान्वयन सुनिश्चित करना चाहिए I यदि अनुदान-ग्राही अनुदान को उक्त कार्य हेतु (जिसके लिए अनुदान को संस्वीकृत किया गया है) प्रयोग नहीं करता है तो उस स्थिति में अनुदान-ग्राही द्वारा समस्त अनुदान राशि को 12% प्रतिवर्ष के ब्याज की दर से परिषद् को वापस लौटाना होगा I

9. तीन लाख से अधिक राशि के अनुदान के अनुमोदित होने की स्थिति में भा.इ.अ.प. के दो अधिकारियों को उस अनुदान की निगरानी का अधिकार प्राप्त होगा I

10. लेखा विभाग सम्बन्धी निपटारे हेतु संयोजक स्वतः जिम्मेदार होगा यदि वह वर्तमान में अनुदान-ग्राही संस्थान के साथ ना भी जुड़ा हो I

 

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